RBI Rules New Rules 2025 – आजकल होम लोन, पर्सनल लोन, एजुकेशन लोन या कार लोन लेना बहुत आम हो गया है। कई बार लोग ईएमआई समय पर चुका देते हैं लेकिन कई बार किसी निजी या आर्थिक परेशानी की वजह से किश्तें समय पर नहीं दे पाते। ऐसी स्थिति में कई बार लोग डर जाते हैं कि अब बैंक उन्हें डिफॉल्टर घोषित कर देगा और कानूनी कार्रवाई शुरू हो जाएगी। लेकिन सच्चाई यह है कि RBI यानी भारतीय रिजर्व बैंक ने लोन न चुका पाने वाले ग्राहकों के लिए भी कुछ अधिकार तय किए हैं जो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
डिफॉल्ट करने का मतलब अपराधी होना नहीं होता
अगर कोई व्यक्ति लोन की ईएमआई समय पर नहीं भर पा रहा है तो इसका मतलब ये नहीं कि वह अपराधी बन गया है। डिफॉल्ट करना किसी मजबूरी या परेशानी की वजह से हो सकता है और RBI ने यह बात अच्छी तरह समझी है। इसी कारण से कुछ जरूरी नियम बनाए गए हैं जिनका पालन हर बैंक और फाइनेंस कंपनी को करना होता है।
पहला अधिकार – नोटिस पाने का अधिकार
अगर कोई लोन अकाउंट 90 दिन तक नॉन पेमेंट की स्थिति में रहता है तो बैंक उसे एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित कर देता है। लेकिन इसके बाद बैंक को 60 दिन का नोटिस देना होता है। इस नोटिस में साफ तौर पर बताया जाता है कि ग्राहक कितनी रकम का बकाया है और कब तक उसे जमा करना है। इस नोटिस पीरियड के दौरान ग्राहक को मौका मिलता है कि वह अपना लोन क्लियर करे या किसी समाधान की दिशा में बात करे।
दूसरा अधिकार – प्रॉपर्टी की बिक्री से पहले सूचना पाने का हक
अगर नोटिस पीरियड में भी ग्राहक बकाया नहीं चुका पाता है तो बैंक उसकी संपत्ति जब्त करने और उसे नीलाम करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। लेकिन इसके लिए भी बैंक को 30 दिन पहले एक पब्लिक नोटिस जारी करना होता है। इस नोटिस में बताया जाता है कि कौन सी प्रॉपर्टी नीलाम होगी, उसकी रिजर्व प्राइस क्या होगी और नीलामी कब होगी। ग्राहक चाहें तो इस दौरान अपनी प्रॉपर्टी को बचाने के लिए जरूरी कदम उठा सकते हैं।
तीसरा अधिकार – वसूली एजेंट की सीमाएं तय होती हैं
अगर कोई व्यक्ति डिफॉल्ट करता है तो बैंक रिकवरी एजेंट भेज सकता है। लेकिन ये एजेंट किसी भी हाल में धमकी या बदसलूकी नहीं कर सकते। RBI के नियम के मुताबिक ये एजेंट सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच ही ग्राहक से मिलने जा सकते हैं। इसके अलावा कोई शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न नहीं किया जा सकता है। अगर किसी एजेंट ने बदसलूकी की तो ग्राहक सीधे बैंक में इसकी शिकायत कर सकते हैं और अगर बैंक सुनवाई नहीं करता तो बैंकिंग ओंबड्समैन से संपर्क किया जा सकता है।
चौथा अधिकार – संपत्ति बेचने के बाद शेष रकम पर हक
अगर बैंक किसी कर्जदार की संपत्ति नीलाम करता है और उससे मिलने वाली रकम बकाया से ज्यादा होती है तो बचे हुए पैसे पर कर्जदार का हक होता है। यानी बैंक सिर्फ उतनी ही रकम रख सकता है जितनी उस पर बकाया हो, बाकी रकम ग्राहक को वापस करनी होती है। यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि ग्राहक के साथ कोई अन्याय न हो।
पांचवां अधिकार – समाधान योजना का विकल्प
अगर कोई ग्राहक समय पर लोन नहीं चुका पा रहा है लेकिन उसकी मंशा साफ है तो वह बैंक से पुनर्गठन यानी रीस्ट्रक्चरिंग की मांग कर सकता है। इसका मतलब है कि बैंक EMI को कम कर सकता है, लोन की अवधि बढ़ा सकता है या कुछ समय के लिए मोहलत दे सकता है। ये सब RBI की गाइडलाइन के तहत आता है। बैंक इस पर विचार करने के लिए बाध्य होता है और अगर ग्राहक समय रहते संवाद करता है तो यह विकल्प काफी मददगार साबित हो सकता है।
क्या है SARFAESI एक्ट
SARFAESI यानी सिक्योरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट, 2002। इसके तहत बैंक किसी सिक्योर लोन (जैसे होम लोन या कार लोन) के बदले रखी गई संपत्ति को जब्त कर सकता है। लेकिन बिना नोटिस दिए और तय प्रक्रिया अपनाए बैंक सीधे कार्रवाई नहीं कर सकता है। इस एक्ट का मकसद है कि बैंक भी सुरक्षित रहें लेकिन साथ ही ग्राहक के अधिकारों की रक्षा भी हो।
अगर बैंक नहीं माने तो क्या करें
अगर बैंक आपकी शिकायत नहीं सुनता या नियमों का पालन नहीं करता तो आप बैंकिंग लोकपाल यानी बैंकिंग ओंबड्समैन के पास शिकायत कर सकते हैं। यह आरबीआई का ही एक हिस्सा होता है जो ग्राहकों और बैंकों के विवादों को सुलझाने का काम करता है। इसके लिए ग्राहक ऑनलाइन या ऑफलाइन शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
लोन न चुका पाने की स्थिति में घबराने की जरूरत नहीं है। जरूरी है कि आप अपने अधिकारों को जानें और समय पर बैंक से बात करें। RBI ने ग्राहकों की सुरक्षा के लिए कई गाइडलाइन बनाई हैं जिनका पालन हर बैंक को करना होता है। इसलिए अगर कभी आप ऐसी स्थिति में फंसे हों तो इन अधिकारों को याद रखें और सही कदम उठाएं। याद रखिए, समस्या का समाधान बातचीत और जानकारी से ही निकलेगा, डर से नहीं।