Income Tax Rules – देश में टैक्स देने वाले करोड़ों लोगों के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसने इनकम टैक्स विभाग की वर्षों से चली आ रही मनमानी पर लगाम लगा दी है। अक्सर देखा गया है कि टैक्सपेयर्स को री-असेसमेंट यानी दोबारा जांच के नाम पर बेवजह परेशान किया जाता है और कई बार पुराने मामलों को फिर से खोलकर उन पर कार्रवाई शुरू कर दी जाती है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इनकम टैक्स विभाग सभी मामलों को मनमाने तरीके से नहीं खोल सकता।
क्या है पूरा मामला
दरअसल, इनकम टैक्स एक्ट की धारा 153ए के तहत अगर किसी करदाता के यहां तलाशी हुई है और उस आधार पर उसका असेसमेंट किया गया है, तो अब इस असेसमेंट को बिना ठोस सबूत के दोबारा नहीं खोला जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने कहा कि बार-बार पुराने मामलों को खोला जाना टैक्सपेयर्स के लिए भारी परेशानी खड़ी करता है और यह सही नहीं है। यह फैसला न सिर्फ कानून की व्याख्या करता है, बल्कि टैक्सपेयर्स को मानसिक राहत भी देता है जो पहले बार-बार इनकम टैक्स विभाग के नोटिस से परेशान रहते थे।
री-असेसमेंट के मामलों पर क्या बोला कोर्ट ने
कोर्ट ने साफ कहा है कि जब तक इनकम टैक्स विभाग के पास तलाशी या जांच के दौरान कोई ठोस और नया सबूत न हो, तब तक किसी टैक्सपेयर्स के केस को फिर से नहीं खोला जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पहले दिए गए फैसले को बरकरार रखते हुए टैक्सपेयर्स के पक्ष में निर्णय दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इनकम टैक्स की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए ताकि आम नागरिकों का विश्वास बना रहे।
धारा 153A, 147 और 148 क्या कहती हैं
इनकम टैक्स एक्ट की धारा 153ए के तहत जब आयकर विभाग किसी करदाता के यहां तलाशी करता है तो उस दौरान मिली जानकारियों के आधार पर छह साल तक के पुराने मामलों की जांच की जा सकती है। लेकिन अगर तलाशी के दौरान कोई खास या ठोस जानकारी हाथ नहीं लगती है, तो पुराने केस फिर से नहीं खोले जा सकते। वहीं धारा 147 और 148 के तहत भी पुराने मामलों को री-ओपन किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए विभाग को यह साबित करना होता है कि कोई जरूरी जानकारी छुपाई गई थी या नई जानकारी सामने आई है।
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला क्यों है खास
इस फैसले का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि पिछले कुछ सालों में आयकर विभाग ने पुराने केस खोलने और री-असेसमेंट के नाम पर हजारों टैक्सपेयर्स को नोटिस भेजे थे। इनमें से कई मामलों में कोई खास वजह नहीं थी, सिर्फ शक के आधार पर ही जांच शुरू कर दी जाती थी। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद टैक्स अधिकारियों को कोई भी कदम उठाने से पहले ठोस प्रमाण पेश करने होंगे।
करदाताओं के लिए क्या बदलेगा अब
अब टैक्सपेयर्स को बिना वजह की जांच और परेशानियों से कुछ हद तक राहत मिल सकती है। पहले जहां हर साल कई करदाताओं को पुराने मामलों को लेकर नए नोटिस मिलते थे, अब उस पर ब्रेक लग सकता है। साथ ही टैक्सपेयर्स को यह भरोसा मिलेगा कि इनकम टैक्स विभाग कोई भी कार्रवाई कानून के दायरे में रहकर ही करेगा।
विभाग के पास अब भी विकल्प है
हालांकि यह भी जरूरी है कि टैक्स चोरी जैसे मामलों में विभाग की ताकत पूरी तरह खत्म न हो। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि अगर तलाशी या जांच में कोई ठोस सबूत मिलता है तो आयकर विभाग पुराने मामलों को फिर से खोल सकता है। लेकिन विभाग को यह दिखाना होगा कि उसके पास ऐसा कोई नया इनपुट है जो पहले उपलब्ध नहीं था।
कानून का उद्देश्य पारदर्शिता और ईमानदारी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पीछे की सोच यही है कि कर प्रणाली पारदर्शी और भरोसेमंद बनी रहे। करदाता अगर ईमानदारी से अपनी आय की जानकारी दे रहा है और टैक्स भर रहा है, तो उसे बार-बार शक के दायरे में लाना सही नहीं है। इससे न केवल सरकार और टैक्सपेयर्स के बीच का भरोसा टूटता है बल्कि व्यवसायिक माहौल पर भी असर पड़ता है।
कानूनी सलाहकारों की क्या है राय
इस फैसले को लेकर टैक्स विशेषज्ञों और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ने भी राहत की सांस ली है। उनका कहना है कि अब टैक्सपेयर्स के अधिकारों की रक्षा बेहतर तरीके से हो सकेगी। साथ ही टैक्स अफसरों पर भी यह जिम्मेदारी होगी कि वे किसी भी जांच से पहले पर्याप्त सबूत जुटाएं और जल्दबाजी में किसी को नोटिस न भेजें।
इस फैसले ने साफ संदेश दे दिया है कि टैक्सपेयर्स को बिना वजह डराने की व्यवस्था अब नहीं चलेगी। टैक्स सिस्टम का उद्देश्य राजस्व इकट्ठा करना जरूर है लेकिन यह काम ईमानदारी, पारदर्शिता और सम्मान के साथ होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से करदाताओं को न सिर्फ कानूनी सुरक्षा मिली है, बल्कि आने वाले समय में टैक्स प्रक्रिया और भी साफ-सुथरी और जवाबदेह बन सकेगी।